अंतराल
यह श्रंखला अंतर-अनुशासनिक प्रकृति के ऐसे व्याख्यानों की प्रस्तुति है, जो शताब्दी के अंत में विगत शताब्दी के ज्ञान और अनुभव तथा आगामी शताब्दी की संभावनाओं का मूल्यांकन करते हैं। इस कार्यक्रम में अब तक निम्नलिखित प्रतिष्ठित विचारकों ने भाग लिया :
- प्रो. दयाकृष्ण ने ‘तृतीय सहस्राब्द ईस्वी में भारत का सभ्यतापरक उपक्रम: संपोषण, नवीकरण एवं नई दिशाओं में विकास’ विषय पर 30 जनवरी 1997 को नई दिल्ली में व्याख्यान दिया।
- प्रो. रामचंद्र गांधी ने ‘स्वराज की छवियाँ’ विषय पर 5 जुलाई 1997 को नई दिल्ली में व्याख्यान दिया।
- प्रो. मुशीरुल हसन ने ‘विभाजन के इतिहास का पुनर्लेखन’ विषय पर 22 अगस्त 1997 को नई दिल्ली में व्याख्यान दिया।
- प्रो. अम्लान दत्ता ने ‘अस्तमान शताब्दी के अनुभव और आगामी शताब्दी के स्वप्न’ विषय पर 22 मार्च 1998 को कोलकाता में व्याख्यान दिया।
- प्रो. वागीश शुक्ल ने ‘भाषा की मृत्यु: एक उत्तर कथन’ विषय पर 17 अक्तूबर 1998 को नई दिल्ली में व्याख्यान दिया।
- प्रो. मृणाल मीरी ने ‘संस्कृतियों की बहुलता और बहुसंस्कृतिवाद’ विषय पर 12 जुलाई 1999 को नई दिल्ली में व्याख्यान दिया।
- श्री शिवनारायण रे ने 22 जून 1999 को नई दिल्ली में ‘संस्कृत पंडित के पुत्र का रेडिकल ह्यूमनिस्ट बनना: हमारी सदी का एक निजी आकलन’ विषय पर व्याख्यान दिया।
- श्री भालचंद्र नेमाडे ने 13 जनवरी 2000 को पणजी में व्याख्यान दिया।
- श्रीमती कपिला वात्स्यायन ने 1 फ़रवरी 2000 को नई दिल्ली में ‘समानांतर ज्ञान प्रणालियाँ: भारतीय दुविधा’ विषय पर व्याख्यान दिया।
- प्रो. मनोजदास ने ‘विगत सदी का संदेश’ विषय पर 9 मई 2000 को नई दिल्ली में व्याख्यान दिया।
- प्रो. जयंत नार्लीकर ने ‘द मैसेज ऑन साइंस फि़क्शन: प्रोफ़ेटिक और ट्राइवल’ विषय पर 26 जुलाई 2000 को नई दिल्ली में व्याख्यान दिया।
- प्रो. राजा रामन्ना ने ‘विज्ञान और धर्म के बीच मतभेद’ विषय पर 19 अगस्त 2000 को व्याख्यान दिया।
- प्रो. निमाई साधन बोस ने 17 अक्तूबर 2000 को कोलकाता में ‘आगामी शताब्दी की समस्याओं और संभावनाओं पर विचार विगत शताब्दी के अनुभवों और ज्ञान की अंतर अनुशासनिक प्रकृति का मूल्यांकन’ विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया।
- डॉ. रोमिला थापर ने ‘शकुंतला: एक वृत्तांत की जीवनी’ विषय पर 1 नवंबर 2000 को नई दिल्ली में व्याख्यान दिया।
- प्रो. के. एन. पणिक्कर ने ‘भारतीय पुनर्जागरण के साथ जो भी हुआ’ विषय पर 5 दिसंबर 2000 को नई दिल्ली में व्याख्यान दिया।
- प्रो. एल.एम. सिंघवी ने ‘सभ्यताओं का संकट’ विषय पर 9 जनवरी 2001 को नई दिल्ली में व्याख्यान दिया।
- डॉ. वंदना शिवा ने ‘संक्रमण, जिससे हम गुज़र रहे हैं’ विषय पर 17 जनवरी 2001 को नई दिल्ली में व्याख्यान दिया।
- फ़ादर प्रताप नाइक ने ‘कोंकणी शोध: कल, आज, और कल’ विषय पर 27 जनवरी 2001 को मुंबई में व्याख्यान दिया।
- प्रो. दीपांकर गुप्ता ने ‘भूलने के लिए सीखना: आधुनिकता की प्रति-स्मृतियाँ’ विषय पर 24 सितंबर 2001 को व्याख्यान दिया।
- प्रो. अविजीत पाठक ने 12 नवंबर 2001 को नई दिल्ली में ‘आधुनिकता से आगे: नई सांस्कृतिक संवेदना की ओर’ विषय पर व्याख्यान दिया।
- प्रो. अशोक सेन ने ‘सदियों पुराना समाजवाद’ विषय पर 28 दिसंबर 2001 को कोलकाता में व्याख्यान दिया।
- श्री प्रबोध पारीख ने ‘परंपराओं की परिकल्पना’ विषय पर 18 सितंबर 2002 को नई दिल्ली में व्याख्यान दिया।
- श्री राम सुतार ने ‘कला और साहित्य के अंतर्संबंध’ विषय पर 26 दिसंबर 2005 को नई दिल्ली में व्याख्यान दिया।
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अद्यतन : 11.12.2024
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