प्रकाशन नीति
10 सितंबर 1967 को साहित्य अकादेमी की परिषद् ने अपनी बैठक में निम्नलिखित प्रकाशन नीति निश्चित की थी :
- साहित्य अकादेमी मूलत: और प्रथमत: भारतीय लेखकों का संगठन है, जिसका उद्देश्य भारतीय भाषाओं का उन्नयन और भारतीय भाषाओं की गतिविधियों को समायोजित करना है।
- राष्ट्रीय हित में अकादेमी के कार्यक्रमों से यह अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसी पुस्तकों के प्रकाशन और वितरण का काम हाथ में ले, जो प्रकाशकों द्वारा साधारणत: प्रकाशित नहीं की जातीं।
- अकादेमी द्वारा प्रकाशित किए जाने के लिए पुस्तकों का जो चयन किया जाता है, वह उन्हीं उद्देश्यों के आधार पर होता है, जिसके जिए यह स्थापित की गई है, व्यावसायिक कारणों से नहीं।
- यह अवश्य उपेक्षित है कि अकादेमी द्वारा प्रकाशित पुस्तकों के प्रकाशन में जो लागत आती है, वह अर्जित की जाए और इसके लिए हर संभव प्रयत्न किए जाने चाहिए। वैसे व्यापक राष्ट्रीय हित में अकादेमी का प्रकाशन कार्यक्रम यह मानकर चलता है कि अर्थ साहाय्य का कुछ अंश तो प्रकाशनों में रहता ही होगा।
मूल्य-निर्धारण नीति
- पांडुलिपि को तैयार करने में हुआ खर्च - जैसे लेखक, संकलनकर्त्ता, अनुवादक, संशोधक आदि को दिए जाने वाले पारिश्रमिक को पुस्तक का मूल्य निर्धारित करते समय नहीं जोड़ा जाना चाहिए और यह मानना चाहिए कि इस प्रकार के खर्च साहित्य अकादेमी के साहित्यिक क्रियाकलापों के अंग हैं और व्यापक राष्ट्रीय हित में इसे अर्थ साहाय्य माना जाए।
- पुस्तक प्रकाशन के खर्च में केवल मुद्रण व्यय, काग़ज़, जिल्दसाज़ी और दूसरे यांत्रिक व्यय शामिल होंगे।
- कार्यकारी मंडल की बैठक में निर्णय लिया गया कि 'अकादेमी के प्रकाशनों का मूल्य उसके लागत मूल्य से कम-से-कम साढ़े तीन गुना रखा जाए'।
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अद्यतन : 21.11.2024
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