साहित्यिक गतिविधियाँ
साहित्य अकादेमी को भारत की समृद्ध संस्कृति तथा यहाँ की विविधता की जानकारी है तथा अकादेमी स्तरों एवं नज़रियों को मटियामेट कर संस्कृति के जबरन मानकीकरण में विश्वास नहीं करती। इसके साथ ही अकादेमी गहरी अंत:सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक तथा प्रयोगात्मक कडि़यों के प्रति भी सचेत है जो कि भारतीय साहित्य की विविध अभिव्यक्तियों को एकीकृत करती है।
हमारे साहित्य का अखिल भारतीय स्वरूप होने के बावजूद भी एक भाषा के लेखक एवं पाठक पड़ोसी राज्य में लिखे जा रहे साहित्य से अनभिज्ञ हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि ऐसी विधियों का आविष्कार किया जाए कि जिससे भारतीय लेखक भाषा और लिपि के अवरोधों को तोड़कर एक-दूसरे को जानें तथा देश की साहित्यिक विरासत की गहन विविधता और जटिलताओं को स्वीकारें तथा उनकी सराहना करें।
साहित्य अकादेमी के कार्यक्रमों को इस रूप में तैयार किया जाता है, जिससे कि आम पाठकों में साहित्यिक जागरूकता को बढ़ाया जा सके, विभिन्न भाषाओं के लेखकों को संवाद हेतु एक मंच प्रदान किया जा सके, शिक्षाविदों को साहित्यिक एवं सौंदर्यपरक विषयों पर चर्चा करने का अवसर प्रदान किया जा सके, समालोचकों को उनके सिद्धांतों, प्रविधियों तथा विश्लेषण के औजारों को पुनर्मूल्यांकित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके तथा कालजयी, मध्यकालीन तथा आधुनिक लेखकों की कृतियों एवं प्रवृत्तियों को पुनर्मूल्यांकित कर उन्हें स्थापित एवं उभरते लेखकों के आमने-सामने लाया जा सके। साहित्य अकादेमी प्रत्येक वर्ष औसतन 150 साहित्यिक तथा विभिन्न प्रकार के अन्य कार्यक्रमों का आयोजन करती है। 24 मान्यता प्रदत्त भाषाओं में होने वाली राष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन 24 भाषा परामर्श मंडलों, जो कि दस महत्तवपूर्ण लेखकों/ विद्वानों/ समालोचकों का होता है (जो प्रत्येक पांच वर्षों के पश्चात् बदल जाते हैं), के सुझावों पर किया जाता है। ये मंडल महत्तवपूर्ण विषयों अथवा लेखकों तथा उनके पाठों पर किसी विशेष वर्ष में जन्म शतवार्षिकी आदि पर राष्ट्रीय संगोष्ठियों के आयोजन का सुझाव देते हैं। चार क्षेत्रीय मंडलों के सुझाव पर तुलनात्मक साहित्य एवं समालोचना पर आधारित क्षेत्रीय संगोष्ठियों का भी आयोजन किया जाता है।
नियमित अंतराल पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का भी आयोजन किया जाता है जिनमें विदेशी विद्वानों को भी आमंत्रित किया जाता है। हाल के वर्षों में ‘नैरेटिव्स’, ‘इंडोलॉजी ऐट क्रॉसरोड्स’, ‘रामायण परंपरा’ तथा ‘मिर्जा ग़ालिब की दुनिया’, जैसे विषयों पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन किया गया। समय-समय पर समकालीन लेखकों तथा विषयों पर परिसंवादों का आयोजन तथा विधाओं पर आधारित कार्यशालाओं एवं अंतर्भाषिक अनुवाद कार्यशालाओं का भी आयोजन किया जाता है। हाल ही में अकादेमी ने जनजातीय एवं लोक साहित्य तथा पददलित वर्गों के नव साहित्य के कार्यक्रमों के आयोजनों पर विशेष बल दिया है, जिससे हमारे कार्यक्रम और अधिक लोकतांत्रिक तथा लोकप्रिय मुद्दों को साझा करने में कारगर सिद्ध हुए हैं। हम अपने कार्यक्रमों एवं गतिविधियों को देश के भीतरी हिस्सों में ले जाने का भी प्रयास कर रहे हैं। संगोष्ठियों, परिसंवादों तथा कार्यशालाओं के अतिरिक्त अकादेमी द्वारा आयोजित किए जाने वाले अन्य कार्यक्रम हैं – लेखक से भेंट, संवाद, कविसंधि, कथासंधि, व्यक्ति और कृति, मेरे झरोखे से, मुलाक़ात, अस्मिता, अंतराल, आविष्कार, लोक : विविध स्वर, संगोष्ठियाँ, संवत्सर व्याख्यान, साहित्यिक अनुवादों पर कार्यशालाएँ, लेखक को यात्रा अनुदान, सांस्कृतिक विनिमय कार्यक्रम आदि; इनकी विस्तृत जानकारी वेबसाइट में निर्धारित स्थानों पर दी गई है।
साहित्योत्सव
प्रत्येक वर्ष फ़रवरी माह में अकादेमी सप्ताहव्यापी साहित्योत्सव का आयोजन करती है। इसकी शुरुआत सृजनात्मक लेखन के लिए दिए जाने वाले अकादेमी पुरस्कार समारोह से होती है।
अकादेमी के अध्यक्ष द्वारा पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। इस समारोह में एक प्रख्यात लेखक को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है। इस समारोह का आरंभ वार्षिक प्रदर्शनी से होता है जिसमें अकादेमी द्वारा विगत वर्ष में आयोजित की गई प्रमुख साहित्यिक गतिविधियों को दर्शाया जाता है। वर्ष के दौरान प्रकाशित पुस्तकों की पुस्तक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया जाता है।
दूसरे दिन लेखक सम्मिलन कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जिसमें पुरस्कृत लेखक श्रोताओं से अपने सृजनात्मक अनुभवों को साझा करते हैं। उसी शाम संवत्सर व्याख्यान का आयोजन किया जाता है, जिसमें एक प्रख्यात लेखक/ विद्वान द्वारा किसी एक साहित्यिक विषय पर अपना व्याख्यान दिया जाता है। अगले तीन दिन किसी समकालीन विषय पर एक साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन किया जाता है जिसमें देशभर से तथा कई बार विदेशों से भी लगभग 60 सृजनात्मक लेखकों/ विद्वानों को आमंत्रित किया जाता है।
आगे...संगोष्ठियाँ
साहित्य अकादेमी साहित्यिक विषयों पर अंतरराष्ट्रींय, राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय स्तरों पर संगोष्ठियों के आयोजनों के साथ प्रख्यात लेखकों की जन्मशतवार्षिकियों का भी आयोजन करती है। 24 भाषाओं में साहित्यिक विषयों एवं लेखकों पर नियमित रूप से संगोष्ठियों का आयोजन किया जाता है।
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संवत्सर व्याख्यान
इसका आरंभ 1986 में हुआ, साहित्य अकादेमी के वार्षिक व्याख्यान को संवत्सर व्याख्यान नाम दिया गया है। यह व्याख्यान ऐसे लब्धप्रतिष्ठ लेखक या सर्जनशील विचारक द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, जिसने भारतीय साहित्य का गहन अध्ययन किया हो। इस बात पर बल दिया जाता है कि इन व्याख्यानों में मूल्यों के प्रति गहरी चिंता व्यक्त हो तथा ये किसी नए साहित्यिक आंदोलन, वर्तमान साहित्यिक प्रवृत्ति के विषय में चिंतन के नए परिदृश्य उद्घाटित करें, किसी रचनाकार या महान कृति के बारे में मौलिक विचार प्रस्तुत करें या साहित्यिक समालोचना अथवा सर्जन के नए द्वार खोलें। अब तक जिन लेखकों तथा विद्वानों ने संवत्सर व्याख्यान दिए हैं वे हैं :
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लेखक से भेंट
साहित्य अकादेमी सन् 1987 से नियमित रूप से लेखक से भेंट कार्यक्रम श्रृंखला का आयोजन कर रही है, इसमें किसी लब्धप्रतिष्ठ लेखक को अपने जीवन और कृतित्व के बारे में बताने के लिए आमंत्रित किया जाता है, जिसमें अन्य लेखकों एवं विद्वानों को लेखक तथा उसके कृतित्व के विषय में गहरी और व्यक्तिगत समझ विकसित हो सके। यह व्याख्यान सामान्यत: 40 मिनट का होता है और उसके पश्चात् 30-40 मिनट तक जीवंत विचार-विमर्श होता है। पहले यह कार्यक्रम केवल दिल्ली में आयोजित करने का विचार था, लेकिन अब यह कार्यक्रम मुंबई, कोलकाता, बेंगळूरु और चेन्नई स्थित अकादेमी के क्षेत्रीय कार्यालयों में भी आयोजित किया जा रहा है।
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कवि-अनुवादक
वर्ष 2001 से प्रारंभ कवि-अनुवादक एक नया साहित्यिक कार्यक्रम है, जो कि श्रोताओं को अनुवादक द्वारा मूल और अनूदित काव्य-रचनाओं को सुनने का सुअवसर प्रदान करता है।
आगे...व्यक्ति और कृति
लेखक से भेंट कार्यक्रम श्रृंखला के पूरक रूप में साहित्य अकादेमी में सन् 1989 से व्यक्ति और कृति कार्यक्रम श्रृंखला आरंभ की, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के लब्धप्रतिष्ठ व्यक्तियों को व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया जाता है। उदाहरण के लिए किसी अणु वैज्ञानिक, किसी शल्य चिकित्सक, किसी संगीतकार, किसी चित्रकार, किसी नर्तक, किसी गणितज्ञ या विधि विशेषज्ञ से उन कृतियों के बारे में बोलने के लिए अनुरोध किया जाता है, जिन्होंने उन्हें प्रभावित किया या नई अंतर्दृष्टि प्रदान की। वक्ता से सामान्यत: 40 मिनट का व्याख्यान देने का अनुरोध किया जाता है, जिसके बाद श्रोतागण अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त करते हैं और प्रश्न पूछते हैं।
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मेरे झरोखे से
इस श्रृंखला को सन् 1993 में प्रारंभ किया गया। इस श्रृंखला में एक प्रसिद्ध लेखक/लेखिका दूसरे प्रसिद्ध समकालीन लेखक के जीवन और कृतित्व के बारे में अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त करता/करती है।
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संवाद
साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता से विभूषित लेखकों के सम्मान में अकादेमी ने 1994 से संवाद नामक कार्यक्रम प्रारंभ किया है, जिससे पाठक उनकी कृतियाँ या उनके अंश पढ़ता हुआ सुन सकें। इस कार्यक्रम में समालोचकों और लेखकों का एक पैनल लेखक की कृतियों के विविध पक्षों पर चर्चा करता है, जिसके बारे में लेखक भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकता है।
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मुलाक़ात
यह विभिन्न भाषाओ के उन युवा लेखकों के लिए एक विशेष मंच है, जिन्हें अपनी साहित्यिक क्षमता दिखाने का अवसर प्राप्त नहीं हो पाता। इस कार्यक्रम के अंतर्गत सर्जनात्मक कृतियों से वाचन, व्याख्यान एवं विचार-विमर्श सम्मिलित हैं। 26 नवंबर 1996 को हुए प्रथम कार्यक्रम में श्री उदय प्रकाश, श्री एन.एस. माधवन और सुश्री गीता हरिहरन ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।
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अस्मिता
यह कार्यक्रम उन लेखकों के लिए है, जो सामूहिक पहचान की खोज में है। सन् 1996 में आयोजित प्रथम कार्यक्रम में तीन कवयित्रियों ने भाग लिया।
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आविष्कार
सन् 1998 में प्रारंभ हुए साहित्यिक कार्यक्रम आविष्कार पाठकों के लिए अवसर प्रदान करता है कि वे भारतीय साहित्य के महान रचनाकारों की कृतियों को एक नवीन दृष्टि से देखें।
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अंतराल
सन् 1997 में प्रारंभ यह श्रृंखला अंतर-अनुशासनिक प्रकृति के ऐसे व्याख्यानों की प्रस्तुति है, जो शताब्दी के अंत में विगत शताब्दी के ज्ञान और अनुभव तथा आगामी शताब्दी की संभावनाओं का मूल्यांकन करते हैं। इस कार्यक्रम में अब तक निम्नलिखित प्रतिष्ठित विचारकों ने भाग लिया है।
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लोक : विविध स्वर
सन् 1996 में प्रारंभ यह कार्यक्रम लोक-साहित्य पर आधारित है, जिसमें व्याख्यानों के साथ-साथ प्रदर्शन भी सम्मिलित हैं। अब तक निम्नलिखित कार्यक्रम किए जा चुके हैं।
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कथासंधि
सन् 1996 में प्रारंभ यह कार्यक्रम वरिष्ठ कथाकारों के लिए है, जहाँ उनके नव-लिखित उपन्यास या नई कहानियों के अंश पढ़े जाते हैं तथा उन पर चर्चा की जाती है। निम्नलिखित लेखकों ने अब तक इस कार्यक्रम में भाग लिया है।
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कविसंधि
सन् 1996 में प्रारंभ यह साहित्यिक कार्यक्रम कविसंधि इस उद्देश्य से शुरू किया गया है, जिससे कि काव्य-प्रेमियों को वरिष्ठ कवि/कवयित्री द्वारा कविताएँ सुनने का अवसर प्रदान हो सके।
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अनुवाद कार्यशालाएँ
भारत जैसे बहुभाषाई परिवेश में देश के विभिन्न क्षेत्रों के अनुवादकों को एक साथ लाने, उन्हें अनुवाद से संबंधित सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक पक्षों की जानकारी देने के लिए आधार जुटाने तथा सामने खड़ी चुनौतियों के मुक़ाबले उन्हें तैयार करने के उद्देश्य से अनुवाद पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय कार्यशालाओं का आयोजन अकादेमी की प्रमुख गतिविधियों में से एक है।
अनुवाद की पहली राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन 15 दिसंबर 1986 को श्री पी. वी. नरसिंह राव ने किया था। इसके बाद श्रीनगर, त्रिवेन्द्रम और कोलकाता में क्षेत्रीय कार्यशालाएँ आयोजित की गईं।
19 दिसंबर 1988 से 7 जनवरी 1989 तक और 20 दिसंबर 1991 से 2 जनवरी 1992 तक नई दिल्ली में दो कार्यशालाएँ आयोजित की गईं। इन सभी कार्यशालाओं में बहुत से प्रशिक्षु अनुवादकों ने भाग लिया और वरिष्ठ अनुवादकों तथा विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में कार्य किया। दूसरी राष्ट्रीय कार्यशाला की अनुशंसा के अनुरूप अकादेमी ने साहित्यिक अनुवाद कार्यशालाओं का आयोजन प्रारंभ किया, जहाँ प्रशिक्षु अनुवादक साहित्यिक सामग्री का अनुवाद विशेषज्ञों के निर्देशन में करते हैं। ये अनुवाद बाद में संपादित कर प्रकाशित किए जाते हैं। अकादेमी ने अब तक असमिया, बाङ्ला, बोडो, डोगरी, अंग्रेज़ी, गुजराती, हिन्दी, कन्नड, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयाळम्, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, राजस्थानी, संस्कृत, संताली, सिंधी, तमिऴ, तेलुगु, उर्दू, खासी, गारो, मिसिंग, मार, करबी और काकबरोक में ऐसी लक्ष्य-भाषा कार्यशालाएँ आयोजित की हैं।
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अद्यतन : 29.10.2024
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