साहित्य अकादेमी ने सन् 1971 में प्राचीन संस्कृत कृति अशोकावदान का यह प्रामाणिक संस्करण प्रकाशित किया। इसे विश्व भारती के चीन भवन के प्रो. सुरजीत कुमार मुखोपाध्याय ने तैयार किया है। चीनी संस्करण से मिलान के साथ-साथ इसमें विस्तृत टिप्पणियाँ भी दी गई हैं और कुछ अंशों का अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है।
बंकिमचंद्र चटर्जी : एस्सेज़ इन पर्सपेक्टिव
प्रस्तुत संकलन में बंकिमचंद्र चटर्जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के अनेक पक्षों पर प्रतिष्ठित भारतीय और पाश्चात्य समालोचकों और विद्वानों ने कई कोणों से प्रकाश डाला है। इसमें लेखक के प्रसिद्ध समकालीनों, शिष्यों और प्रशंसकों की श्रद्धांजलियाँ और संस्मरण भी संकलित हैं। बंकिमचंद्र के शिल्प और चिन्तन के विभिन्न पक्षों पर महत्त्वपूर्ण अध्ययनों के अलावा इस ग्रंथ के परिशिष्ट में, उनके जीवन का समूचा और व्यापक कालानुक्रम, उनके अंग्रेजी, बाङ्ला और अन्य भारतीय भाषाओं की ग्रंथसूची, श्री अरविन्द द्वारा लिखा गया आनंदमठ का पुरोवाक् और उसका प्रथम अध्याय और लेखक के विचार और चिन्तन के अंश (मूल अंग्रेजी में) शामिल हैं। लेखक के कुछ चित्रां और शबीहों की पुनर्प्रस्तुति से इस ग्रंथ का महत्त्व ब़ढ गया है।
क्रिटिकल इन्वेंटरी ऑफ़ द रामायण
यूनियन एकेडमिक इंटरनेशनल, ब्रुसेल्स के साथ एक संयुक्त परियोजना में अकादेमी ने विश्व में रामायण-अध्ययन की समालोचनात्मक सूची के दो खंड प्रकाशित किए हैं। परियोजना का पहला खंड नृत्य, नाटक, गीत, स्थापत्य, फिल्म, लोक, जनजातीय और वाचिक पंरपरा में चित्रित रामायण में संबंधित विषय-वस्तु की आधारभूत सूचना प्रस्तुत करता है। दूसरे खंड में छह विदेशी भाषाओं में रामायण पर ग्रंथसूची संबंधी विवरण उपलब्ध हैं। संस्कृत साहित्य के मर्मज्ञ प्रो. के. कृष्णमूर्ति ने दोनों खंडों का संपादन किया है, जो स्वयं संस्कृत के और रामायण के अधिकारी विद्वान माने जाते हैं।
कालिदास की कृतियों के समालोचनात्मक संस्करण
यह परियोजना साहित्य अकादेमी द्वारा अपने हाथ में ली गई आरंभिक परियोजनाओं में से एक थी। कालिदास की रचनाओं के प्रामाणिक संस्करण तैयार करने के लिए संस्कृत के कृति विद्वानों का एक संपादक मंडल बनाया गया था, जिसके अध्यक्ष डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और संयोजक डॉ. वी. राघवन थे। इस संपादक मंडल के मार्गदर्शन में कालिदास की रचनाओं के प्रामाणिक संस्करण तैयार किए गए हैं। प्रत्येक रचना के प्रामाणिक संस्करणों का कार्य, संबंधित क्षेत्र के एक-एक गण्यमान्य विद्वान् को सौंपा गया। इस क्रम में अब तक निम्न छह ग्रंथ प्रकाशित किए जा चुके हं डॉ. एस. के. डे द्वारा संपादित मेघदूत, प्रो. के. ए. एस. अय्यर द्वारा संपादित मालविकाग्निमित्रा, प्रो. एच. डी. बेलणकर द्वार संपादित विक्रमोर्वशीय, डॉ. सूर्यकांत द्वारा संपादित कुमारसंभव एवं डॉ. गौरीनाथ शास्त्री द्वारा संपादित अभिज्ञान शाकुंतल और प्रो. रेवाप्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित ऋतुसंहार। सन् 1993 में प्रो. रेवाप्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित रघुवंश का भी प्रकाशन हुआ। प्रो. एस. के. वेलवलकर द्वारा संपादित अभिज्ञान शाकुंतल का पाठ भी प्रकाशित हो चुका है। मेघदूत सन् 1971 और 1982 में, विक्रमोर्वशीय सन् 1981 में और कुमारसंभव 1982 में पुनर्मुद्रित हुआ।
मौलाना आजाद की संगृहीत रचनाएँ
अकादेमी ने आधुनिक भारत के अग्रणी नेताओं में से एक मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की समस्त उर्दू रचनाओं के संकलन, संपादन और प्रकाशन का काम अपने हाथ में लिया। इन रचनाओं के संपादन और उनके प्रकाशन की देख-रेख के लिए एक विशेष संपादक मंडल का गठन किया गया था, जिसके अध्यक्ष डॉ. ज़ाकिर हुसैन थे। संपादन का काम पहले श्री अजमल ख़ाँ ने किया। बाद में संकलन और संपादन का दायित्व श्री मालिक राम को सौंपा गया। तर्जुमानुल क़ुरान के संशोधित संस्करण चार खंडों में प्रकाशित हुए। गुबारे ख़ातिर के तीन, तज़किरा के चार और ख़ुतबाते आज़ाद खंड I के तीन संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। अकादेमी गुबारे ख़ातिर का देवनागरी लिप्यंतरण और तेलुगु अनुवाद भी प्रकाशित कर चुकी है। इनके दो-दो संस्करण निकल चुके हैं।
कंटेम्परेरी इंडियन लिटरेचर
साहित्य अकादेमी ने समसामायिक साहित्य के संबंध में कंटेम्परेरी इंडियन लिटरेचर नामक एक ग्रंथ सन् 1959 में प्रकाशित किया, जिसमें भारत की सोलह प्रमुख भाषाओं की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उसके साम्प्रतिक साहित्य का सर्वेक्षण भाषाओं के अधिकारी विद्वानों ने किया है। इस ग्रंथ के चार संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।
मूलत: अंग्रेजी में प्रकाशित इस ग्रंथ के अनुवाद डोगरी, हिन्दी, गुजराती, कन्नड, मलयाळम्, मराठी, पंजाबी, तमिऴ और तेलुगु में प्रकाशित हो चुके हैं। हिन्दी अनुवाद के छह संस्करण निकल चुके हैं।
इंडियन लिटरेचर सिंस इंडिपेण्डेंस
सन् 1972 में समूचे देश में मनाई गई स्वतंत्रता की रजत जयंती के उपलक्ष्य में साहित्य अकादेमी ने इंडियन लिटरेचर सिंस इंडिपेण्डेंस नामक एक ग्रंथ प्रकाशित किया है, जिसमें साहित्य अकादेमी द्वारा मान्य भारतीय भाषाओं की साहित्यिक प्रवृत्तियों का अधिकारी विद्वानों ने सर्वेक्षण किया है। इस ग्रंथ का संपादन प्रो. के. आर. श्रीनिवास आयंगर ने किया है और उन्होंने उसकी भूमिका भी लिखी है। यह ग्रंथ उपरलिखित कंटेम्परेरी इंडियन लिटरेचर नामक ग्रंथ की अगली महत्त्वपूर्ण क़डी है।
मेकिंग ऑफ़ इंडियन लिटरेचर
यह साहित्य अकादेमी द्वारा सन् 1986-88 के दौरान आयोजित चार साहित्यिक कार्यशालाओं की समेकित रिपोर्ट है। कार्यक्रम और कार्रवाइयों के तथ्यात्मक लेखा-जोखा के अतिरिक्त इसमें साहित्यानुवाद के विविध पक्षों पर अतिथि विशेषज्ञों द्वारा दिए गए व्याख्यान, कुछ भाषाओं में अनूदित साहित्य के एेतिहासिक सर्वेक्षणों, अनुवाद की सैद्धांतिक और व्यावहारिक समस्याओं, प्रसिद्ध सर्जनात्मक लेखकों के विचार और भारत के समस्त भागों के प्रशिक्षु अनुवादकों द्वारा प्रस्तावित अनुशंसाएँ भी सम्मिलित हैं।
रवीन्द्रनाथ पर तथा उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथ
रवीन्द्रनाथ टैगोर ए सेण्टेनरी वाल्यूम (सन् 1861-1961)
सन् 1981 में रवीन्द्रनाथ की जन्म-शतवार्षिकी के अवसर पर यह ग्रंथ उनकी स्मृति को एक विनम्र श्रद्धांजलि था। इस ग्रंथ में विश्व के अनेक भागों के प्रसिद्ध विद्वानों द्वारा रवीन्द्रनाथ के व्यक्तित्व पर लिखे गए महत्त्वपूर्ण आलेख शामिल हैं। इसके अतिरिक्त इस ग्रंथ में वर्ष-प्रतिवर्ष का कवि का जीवन क्रम और उनकी बाङ्ला और अंग्रेजी कृतियों की ग्रंथ सूची भी है। प्रख्यात कलाकारों द्वारा रवीन्द्रनाथ के बनाए गए रंगीन चित्रों की प्रस्तुति ने इस ग्रंथ के महत्त्व को ब़ढा दिया है। इसके चार संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।
रवीन्द्रनाथ टैगौर
रवीन्द्रनाथ की 125वीं जयंती के अवसर पर प्रो. शिशिर कुमार घोष द्वारा लिखित और साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का लोकार्पण तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सन् 1986 में किया।
रवीन्द्र रचना संचयन
द इंग्लिश राइटिंग्स ऑफ़ रवीन्द्रनाथ टैगोर (तीन खंड) संपादक शिशिर कुमार दास
साहित्य अकादेमी ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर के मूल अंग्रेजी लेखन को तीन खंडों में प्रकाशित किया हैं। खंड I उनकी कविताओं को समर्पित है, खंड II में उनके नाटक, कहानियाँ और निबंध संकलित है तथा खंड II में उनके विविध कार्य जैसे - उनके व्याख्यान, उद्बोधन, उनके पत्रा, श्रद्धांजलियाँ, वार्तालाप, साक्षात्कार आदि संकलित हैं। खंड I का प्रकाशन सन् 1994 में किया गया तथा इसका पुनर्मुद्रण सन् 1997 में किया गया। खंड I और II का प्रकाशन सन् 1996 में किया गया। रवीन्द्रनाथ के उत्कृष्ट उपन्यास गोरा का सुरजीत मुखर्जी द्वारा अविकल अनुवाद भी प्रकाशित है।
राजतरंगिणी
कल्हण द्वारा कश्मीर के शासकों के इतिहास पर लिखे गए इस विख्यात संस्कृत ग्रंथ के अंग्रेजी अनुवाद के तीन संस्करण साहित्य अकादेमी प्रकाशित कर चुकी है। यह अनुवाद आर. एस. पंडित ने किया है।
द रामायण ट्रेडिशन इन एशिया
सन् 1975 में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय रामायण संगोष्ठी में प्रस्तुत चालीस आलेखों के इस संकलन का संपादन वी. राघवन द्वारा किया गया, जिसकी भूमिका प्रो. उमाशंकर जोशी ने लिखी है। यह पुस्तक सन् 1981 में प्रकाशित हुई।
श्री ज्ञानदेव : अनुभवामृत
(मराठी गौरवग्रंथ द इम्मॉरटल एक्सपीरिएंस ऑफ़ बीर्इंग) : इसका अंग्रेजी अनुवाद दिलीप चित्रो ने किया है। कश्मीरी शैवागम पंरपरा में यह एक अनूठी काव्यात्मक कृति है - जिसमें आत्मा की साधना पर चिन्तन है। इसका अंग्रेजी अनुवाद भारतीय गौरवग्रंथ श्रंखला के अंतर्गत सन् 1996 में प्रकाशित किया गया।
शब्दकोश
- महापंडित राहुल सांकृत्यायन द्वारा संकलित तिब्बती- हिन्दी शब्दकोश (भाग 1)।
- डब्ल्यू. आर. ऋषि द्वारा संकलित रूसी-हिन्दी शब्दकोश तथा परमानंद मेवाराम के रूसी-हिंदी शब्दकोश के दो पुनर्मुद्रण।
- अंग्रेजी-सिन्धी शब्दकोश।
- शांतिनिकेतन के हरिचरण बंद्योपाध्याय द्वारा संकलित और संपादित बंगीय शब्दकोश।
द नेशनल रजिस्टर ऑफ़ ट्रांसलेटर्स
इसमें 25 भारतीय भाषाओं और फ्रांसीसी, स्पानी, जापानी और जर्मन आदि विदेशी भाषाओं में 1766 अनुवादकों के नाम-पते सम्मिलित हैं। यह पंजिका विद्वानों और प्रकाशकों के लिए उपयोगी निर्देशिका का काम करेगी।
अकादेमी ने पंजिका के प्रकाशन को सतत् कार्यक्रम माना है और उसके पूरक खंडों के प्रकाशन की योजना है।
भारतीय साहित्य ग्रंथसूची (20वीं शताब्दी)
दुर्भाग्य से अभी तक भारतीय भाषाओं में प्रकाशित ग्रंथों की कोई संपूर्ण सूची उपलब्ध न थी। राष्ट्रीय पुस्तकालय, कोलकाता ने सन् 1954 से भारतीय भाषाओं के सांप्रतिक प्रकाशनों की आवधिक सूचियाँ प्रकाशित करनी शुरू कर इस दिशा में एक सराहनीय सेवा की है। इसके पूर्व की अवधि में प्रकाशित ग्रंथों की एक बृहत् सूची तैयार करने का कार्य साहित्य अकादेमी ने अपने हाथ में लिया। इस सूची में 20वीं शताब्दी के प्रारंभ से लेकर सन् 1953 तक के ग्रंथ शामिल किए जा रहे हैं। देश में भाषाओं और लिपियों की विविधता और समृद्ध पुस्तकालयों के अभाव के कारण इस कार्य में जो कठिनाइयाँ और जटिलताएँ सामने आई हैं, उन्हें सुलझाने के उद्देश्य से प्रत्येक भाषा की ग्रंथसूची का कार्य पृथक्-पृथक् विशेषज्ञों को सौंपना प़डा। कार्य के संपूर्ण निर्देशन का भार राष्ट्रीय पुस्तकालय, कोलकाता के तत्कालीन पुस्तकालयाध्यक्ष श्री बी. एस. केशवन को सौंपा गया। ग्रंथसूची का प्रथम खंड, जिसमें असमिया, बाङ्ला अंग्रेजी और गुजराती भाषाओं के ग्रंथों का समावेश है। सन् 1962 में प्रकाशित हो चुका है। सन् 1966 में प्रकाशित ग्रंथसूची के दूसरे खंड में हिन्दी, कन्नड, कश्मीरी और मलयाळम् सन् 1971 में प्रकाशित तीसरे खंड में मराठी, ओ़डिया, पंजाबी और संस्कृत भाषा के ग्रंथों का तथा सन् 1990 में प्रकाशित पाँचवे खंड में डोगरी, कोंकणी, मैथिली, मणिपुरी, नेपाली और राजस्थानी ग्रंथों का समावेश है और वह सन् 1901 से सन् 1980 तक की अवधि को समेटता है। इस खंड का संपादन श्री के. सी. दत्त ने किया। इस संदर्भ में नई श्रंखला (1954-2000) का आरंभ सितंबर 2002 में कर दिया गया है। बाईस भाषाओं से प्रविष्टियों का कार्य प्रगति पर है।
हू'ज़ हू ऑफ़ इंडियन राइटर्स (संशोधित संस्करण)
अकादेमी ने जो योजनाएँ सबसे पहले अपने हाथ में ली थीं, उनमें भारतीय साहित्यकार परिचय का एक बृहत् संकलन तैयार करना भी था। 5,000 से भी अधिक लेखकों के जीवन और कृतित्व संबंधी जानकारी देनेवाला इसका प्रथम संस्करण सन् 1961 में प्रकाशित हुआ। इस प्रकाशन का न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी भरपूर स्वागत हुआ और होनोलुलू के ईस्ट-वेस्ट सेंटर प्रेस ने साहित्य अकादेमी के सहयोग से इसका एक अमेरिकी संस्करण भी प्रकाशित किया। प्रो. वी. के. गोकाक की प्रस्तावना के साथ श्री एस. बालू राव द्वारा संपादित हू'ज़ हू ऑफ़ इंडियन राइटर्स सन् 1983 में प्रकाशित हुआ। यह पहले संस्करण का संशोधित रूप है और इसमें 6,000 भारतीय लेखकों और उनके प्रकाशनों के संबंध में जानकारी दी गई है। इसका एक पूरक खंड (सन् 1990 तक) सन् 1993 में प्रकाशित हुआ।
शताब्दी की समाप्ति पर हू'जष् हू के संशोधित नए संस्करण मेंं 9,000 से भी अधिक भारतीय लेखकों की परिचयात्मक प्रविष्टियाँ उपलब्ध हैं। इसका संपादन श्री के. सी. दत्त ने किया है तथा इसका प्रकाशन 1999 में किया जा चुका है।
हू'ज़ हू ऑफ़ संस्कृत स्कॉलर्स इन इंडिया
इस ग्रंथ का पहला खंड संस्कृत में और दूसरा खंड अंग्रेजी में है। इसमें राज्य और विषयवार जीवित संस्कृत विद्वानों के बारे में सूचना है। देश में संस्कृत विद्वानों के बारे में यह एक अनूठी और अमूल्य निदेशिका है। इस ग्रंथ का प्रकाशन सन् 1994 में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान और साहित्य अकादेमी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है। इस खंड का संपादन श्री के. सी. दत्त ने किया है।
बिब्लियोग्राफ़ी ऑफ़ ट्रांसलेशंस
इस खंड का संकलन प्रो. गणेश नारायण देवी ने किया है और एेसी आशा की जाती कि वह अपने आप में पहली तरह की अनुवादों की ग्रंथसूची है, जिसमें अनुवाद कहाँ से और किन भारतीय भाषाओं से किया गया है, की सूचनाएँ उपलब्ध हैं। इस खंड का कार्य प्रकाशनाधीन है।
साहित्येतिहास श्रंखला
इस ग्रंथमाला का उद्देश्य है - विभिन्न भारतीय भाषाओं में साहित्य अध्येताओं और सामान्य पाठकों के लिए प्रामाणिक साहित्येतिहास उपलब्ध कराना। ये इतिहास प्रत्येक भाषा के सक्षम विद्वानों द्वारा अंग्रेजी या संबद्ध भाषा में लिखे गए हैं। उन्हें अन्य भारतीय भाषाओं में भी अनूदित किया जा रहा है। इस श्रंखला में अब तक 18 भाषाओं के साहित्येतिहास प्रकाशित किए जा चुके हैं।
भारतीय साहित्य के निर्माता श्रंखला
इस श्रंखला में उन महत्त्वपूर्ण भारतीय लेखकों के ऊपर विनिबंध प्रकाशित किए जाते हैं, जिन्होंने भारतीय भाषाओं में साहित्य के विकास के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान किया है। ये विनिबंध उन पाठकों को ध्यान मे रखकर लिखे गए हैं, जिनका लेखक के कृतित्व से सीधा परिचय नहीं है।
संकलन और संचयन
कंटेम्परेरी इंडियन शार्ट स्टोरीज़
कंटेम्परेरी इंडियन शार्ट स्टोरीज़ नामक ग्रंथमाला के अंतर्गत साहित्य अकादेमी आधुनिक भारतीय भाषाओं की प्रतिनिधि कहानियों के अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित करती है। इस ग्रंथमाला का पहला खंड सन् 1959 में प्रकाशित हुआ था और अब तक उसके छह संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। दूसरा खंड, जिसमें सन् 1930 से सन् 1950 तक की रचनाएँ संकलित हैं, सन् 1968 में प्रकाशित हुआ। सन् 1977, 1982 और 1988 में यह पुनर्मुद्रित हुआ। तीसरा खंड सन् 1988 में प्रकाशित हुआ। शांतिनाथ के. देसाई द्वारा संपादित चौथा खंड सन् 1996 में प्रकाशित हुआ। पाँचवाँ खंड तैयार किया जा रहा है। इस श्रंखला के खंडों का हाल ही में पुनर्लेखन और प्रकाशन किया गया है।
संस्कृत साहित्य का संकलन
साहित्य अकादेमी ने संस्कृत साहित्य के बृहत् संकलन संकलित और संपादित किए हैं।
भारतीय कविता के संकलन
इस श्रंखला में असमिया, हिन्दी, कन्नड, कश्मीरी, कोंकणी, मलयाळम्, ओ़डिया, पंजाबी, राजस्थानी (प्राचीन), सिन्धी, तमिऴ, तेलुगु और उर्दू कविता-संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें से असमिया कविता-संकलन के नौ और तमिऴ कविता-संकलन के चार संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। कोंकणी, पंजाबी और तेलुगु कविता-संकलनों के दो-दो संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।
पंजाबी कविता-संकलन का हिन्दी अनुवाद भी प्रकाशित किया जा चुका है। डॉ. पी. वी. बापट द्वारा संपादित पालि कविता का संकलन पालि संग्रह सन् 1968 में प्रकाशित किया गया था।
प्रो. वी. के. गोकाक द्वारा संपादित भारतीय कवियों की अंग्रेजी कविताओं का संकलन द गोल्डन ट्रेज़ी ऑफ़ इंडो- एंग्लिअन पोएट्री (सन् 1823-1965) सन् 1970 में प्रकाशित किया गया था, जो पाँच बार पुनर्मुद्रित हो चुका है। इसी श्रृंखला में विद्यार्थियों के लिए प्रो. गोकाक ने इक्कीस कविताओं का एक और संग्रह ट्वेंटी-वन इंडो-एंग्लिअन पोएम्स नाम से संपादित किया, जो सन् 1975 में प्रकाशित हुआ और सन् 1979 में पुनर्मुद्रित हुआ।
दक्षेस देशों की कविताओं के संकलन का संपादन के. सच्चिदानंदन ने गेस्चर्स नाम से किया तथा इसका प्रकाशन सन् 1996 में हुआ।
ई. वी. रामाकृष्णन् द्वारा संपादित बीसवीं शताब्दी की भारतीय कहानियाँ और जी. पी. देशपांडे द्वारा संपादित आधुनिक भारतीय नाटक वर्ष 2000 में प्रकाशित किया जा चुका है।
भारतीय कविता
इस ग्रंथमाला का उद्देश्य एक विशिष्ट कालावधि में प्रमुख भारतीय भाषाओं में प्रकाशित प्रतिनिधिक विताओं के संकलन प्रस्तुत करना था। इसमें मूल कविताएँ देवनागरी लिपि में प्रस्तुत की जाती थीं तथा उनके सामने वाले पृष्ठ पर हिन्दी अनुवाद दिया जाता था। प्रथम खंड में सन् 1957 में प्रकाशित कविताएँ संकलित हैं, द्वितीय खंड में सन् 1954-55 में प्रकाशित, तृतीय खंड में सन् 1956-57 में प्रकाशित और चतुर्थ खंड में सन् 1958-59 में प्रकाशित कविताएँ संकलित हैं। ये खंड क्रमश: सन् 1957, 1961, 1967 और 1972 में प्रकाशित हुए थे।
इस योजना पर पुनर्विचार के बाद इस श्रंखला में ग्रंथों का प्रकाशन बंद कर दिया गया।
लोककाव्य के संकलन
असमिया लोककाव्य का संग्रह बारा माहर तेरा गीत और पंजाबी लोकगीतों का संग्रह पंजाबी लोकगीत प्रकाशित हो चुके हैं। असमिया लोककाव्य-संग्रह के दो तथा पंजाबी लोककाव्य-संग्रह के चार संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। अकादेमी ने कांग़डा क्षेत्र के लोकगीतों का भी एक संकलन प्रकाशित किया है तथा इस क्षेत्रा के जनजीवन और उसके रीतिरिवाज़ों के संबंध में डॉ. एम.एस. रंधावा द्वारा लिखित एक परिचय पुस्तिका का प्रकाशन भी किया है।
इसका हिन्दी अनुवाद भी प्रकाशित हो चुका है। डोगरी लोकगीतों का संग्रह डोगरी लोकगीत, कन्नड लोकगीतों का संग्रह जनपद गीतांजलि और गुजराती लोकगीतों का संग्रह गुजरातना लोकगीतों भी प्रकाशित हो चुके हैं। तमिऴ लोकगीतों और कन्नड लोक जनजातीय गीतों से संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं।
लोककथाओं के संकलन
अकादेमी ने सन् 1968 में अंग्रेजी में बिहार की लोककथाओं का एक संचयन प्रकाशित किया था। इसके दो संस्करण प्रकाशित हुए। इसके बाङ्ला, तमिऴ और तेलुगु अनुवाद भी प्रकाशित किए गए हैं। कर्नाटक की लोककथाओं का संकलन दो खंडों में प्रकाशित किया गया है - एक खंड में उत्तर कर्नाटक की लोककथाएँ हैं, दूसरे में दक्षिण कर्नाटक की। कन्नड लोककथाएँ नाम से इसका हिंदी अनुवाद भी प्रकाशित हो चुका है। डोगरी लोककथा नामक डोगरी लोककथाओं का एक संकलन तथा गुजराती लोक कथा नाम से गुजराती लोककथाओं का एक संकलन प्रकाशित किया गया है। कर्नाटक की लोक और जनजातीय कथाओं का एक संकलन जनपद माट्टु गिरिजन कथेगळु नाम से; पंजाबी लोककथाओं का एक संकलन लोक कहानी : पंजाबी नाम से और सिन्धी लोककथाओं का एक संकलन सिन्धी लोक कहानियूँ नाम से प्रकाशित हुआ है। रॉबिन रायचौधुरी द्वारा अंग्रेजी में लिखित द फशेक टेल्स ऑफ़ निकोबार का प्रकाशन हाल ही में किया गया है।
भक्ति तथा संत काव्य के संकलन
इस ग्रंथमाला के अंतर्गत असमिया में भक्ति-गीत पद संचयन और बाङ्ला में वैष्णव पदावली, चैतन्य चरितामृत, चैतन्य भागवत्, कवि कंकण, चंडीमंगल और मनसा मंगल (तीन संस्करण) प्रकाशित हो चुके हैं। सर्वज्ञ वचन संग्रह और श्री बसवन्नावर वचन संग्रह कन्नड में प्रकाशित हुए हैं। मैथिली में विद्यापति गीतशती (दो संस्करण) और सिन्धी में बेवस, शाह, सचल और सामी के संकलन प्रकाशित हुए हैं। एक से दूसरी भाषा में अनुवाद के क्रम में मराठी गौरवग्रंथ ज्ञानेश्वरी, अमृतानुभव और चंगदेव बाङ्ला में प्रकाशित हुए हैं और कन्नड का ग्रंथ बसवान्नवर वाक्कमुडु तमिऴ में प्रकाशित हुआ है। सिन्धी के शाह लतीफ़ का काव्य हिन्दी में और हिन्दी कबीर वचनावली के अनुवाद गुजराती (तीन संस्करण), कन्नड (दो संस्करण), तमिऴ, तेलुगु, (दो संस्करण) तथा उर्दू में प्रकाशित हुए हैं।
स्तवंत्रता संग्राम के गीत और कविताएँ
अकादेमी ने मैथिली और मलयाळम् में स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित गीतों और कविताओं का एक संकलन प्रकाशित किया है।
बाल साहित्य
साहित्य अकादेमी के प्रकाशन कार्यक्रम की नई योजनाओं में से एक योजना है - विभिन्न भाषाओं में बाल पुस्तकों का प्रकाशन। भारतीय भाषाओं में बाल कृतियों के अनुवादों के प्रकाशन से इस योजना का शुभारंभ किया गया। आकर्षक चित्रों के साथ ये कृतियाँ अकादेमी द्वारा सन् 1990 से प्रकाशित की जा रही हैं। 16 भारतीय भाषाओं की बाल कृतियों के 100 से अधिक अनुवाद तथा साथ ही गारो, बोडो, हमान खासी, काकबरोक और राभा भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित किए जा चुके हैं।
भारतीय साहित्य संकलन
22 भाषाओं में साहित्य की विधाओं में तीन बृहत् संकलन प्रकाशित करने की अकादेमी की एक योजना है। यह परियोजना प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक काल खंडों को समेटेगी। इसमें सर्वेक्षण तथा चुनी हुई श्रेष्ठ रचनाओं के अंग्रेजी अनुवाद होंगे।
मॉडर्न इंडियन लिटरेचर (3 खंडों में)
डॉ. के. एम. जार्ज द्वारा संपादित तीन खंडोंवाला मॉर्डन इंडियन लिटरेचर जो सन् 1800-1975 के काल खंड को समेटता है, अकादेमी द्वारा प्रकाशित किया गया है। पहले खंड में कविताओं के सर्वेक्षण हैं, दूसरे में कथा-साहित्य और तीसरे खंड में नाटक और गद्य हैं।
मेडिइवॅल इंडियन लिटरेचर (4 खंडों में)
1100-1800 ई. तक से संबंधित मेडिइवॅल इंडियन लिटरेचर के चारों खंड प्रकाशित किए जा चुके हैं। पहले खंड के दो भाग हैं : समस्त भाषाओं का सर्वेक्षण तथा असमिया, बाङ्ला और डोगरी भाषाओं के संचयन। अन्य खंडों में बाकी की 21 भारतीय भाषाओं से संचयन हैं। यह परियोजना प्रधान संपादक प्रो. के. अय्यप्प पणिक्कर की अध्यक्षता में सफलतापूर्वक संपन्न हुई। दूसरे खंड में गुजराती, हिन्दी, कश्मीरी तथा कोंकणी, भाषाओं से संचयन हैं। तीसरे खंड में मैथिली, मलयाळम्, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओ़डिया तथा पंजाबी भाषाओं से संचयन हैं। चौथे खंड में राजस्थानी, संस्कृत, सिन्धी, तमिऴ, तेलुगु और उर्दू भाषाओं से संचयन संकलित हैं।
एनशिएंट इंडियन लिटरेचर (3 खंडों में)
1100 ई. में पहले के काल से संबद्ध प्राचीन साहित्य की यह परियोजना टी.आर.एस. शर्मा के संपादन में संपन्न हुई। इसके तीनों खंड 3000 वर्षों को समेटते हैं, इसमें वैदिक और क्लासिकल, संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, तमिऴ और कन्नड साहित्य का ऐतिहासिक सर्वेक्षण है।
इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ इंडियन लिटरेचर
साहित्य अकादेमी द्वारा किया जा रहा एक महत् कार्य है - इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ इंडियन लिटरेचर का प्रकाशन। यह इस देश में अपने ढंग का एकमात्र और प्रथम प्रयास है, जिसमें 22 भाषाओं को शामिल किया गया है। अंग्रेजी में लिखित यह विश्वकोश भारतीय साहित्य की अभिवृद्धि और विकास की व्यापक रूपरेखा प्रस्तुत करता है। लेखकों, पुस्तकों तथा सामान्य विषयों पर प्राप्त प्रविष्टियाँ संबंद्ध परामर्श मंडलों द्वारा तालिकाबद्ध की गई और संचालन समिति द्वारा उसे अंतिम रूप दिया गया। समूचे देश में सैक़डों लेखकों को विभिन्न विषयों पर लिखने के लिए आमंत्रित किया गया। छह खंडों के इस विश्वकोश की परियोजना पूरी हो चुकी है। प्रत्येक खंड की पृष्ठ संख्या लगभग एक हज़ार है।
साहित्य अकादेमी ने इस परियोजना का आरंभ सन् 1984 में किया था। संपादकीय सहयोगियों के अथक प्रयासों द्वारा इसका पहला खंड सन् 1987 में प्रकाशित किया गया। दूसरे खंड का सन् 1988, तीसरे खंड का सन् 1989, चौथे खंड का सन् 1991, पाँचवें खंड का सन् 1992 और छठे खंड का सन् 1994 में प्रकाशन किया गया।
सभी छह खंडों में विभिन्न शीर्षकों, साहित्यिक विचारधाराओं और आंदोलनों, सुविख्यात लेखकों तथा उनके द्वारा किए गए सार्थक कार्यों की लगभग 7500 प्रविष्टियाँ उपलब्ध हैं। पहले तीन खंडों का संपादन प्रो. अमरेश दत्त ने किया, चौथे और पाँचवें खंड का प्रो. मोहनलाल और छठे खंड का श्री परम अबीचंदानी और श्री के. सी. दत्त ने संपादन किया।
इनसाइक्लोपीडिया के संशोधित संस्करण का संपादकीय कार्य प्रो. इन्द्र नाथ चौधुरी को सौंप दिया गया है।
हिस्ट्री ऑफ़ इंडियन लिटरेचर
साहित्य अकादेमी भारतीय साहित्य के समन्वित इतिहास को बहुखंडों में प्रकाशित करने की योजना पर कार्य कर रही है। यह विभिन्न युगों, विभिन्न सामाजिक-धार्मिक परिस्थितियों के अंतर्गत भारतीयों की साहित्यिक गतिविधियों का लेखा-जोखा होगा। इसमें उन सामाजिक-राजनीतिक कारकों को समझने का प्रयत्न है, जो प्रत्येक युग और प्रत्येक समाज में साहित्यिक मानदंड निर्धारित करते हैं। इस प्रकार यह हमारे क्षेत्रीय साहित्य और उनके अंतर्सम्बंधों को समझने की कोशिश है।
इस योजना का लक्ष्य है - ऋग्वैदिक काल से लेकर अब तक की साहित्यिक गतिविधियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करना।
सन् 1800 से 1910 तक के काल खंड और सन् 1911 से 1950 तक की कालावधि वाले खंड प्रकाशित हो चुके हैं। इनका संकलन प्रो. शिशिर कुमार दास के नेतृत्व में विद्वानों के एक दल ने किया है। तुलनात्मक साहित्य के अंतर्गत यह योजना शुरू की गई है।
नवोदय योजना
अकादेमी ने यह नई योजना किसी लेखक की प्रथम पुस्तक उसकी मूल भाषा में प्रकाशित करने के उद्देश्य से शुरू की है। अब तक प्रकाशित कुछ पुस्तकें हैं - इमरान हुसैन कृत हुडुमदेव अरु अन्यान्य गल्प (असमिया कहानियाँ), प्रीतिधारा सामल कृत डारी (ओ़डिया कविता) और राजेश पांडे कृत पृथ्विने आ छोड (गुजराती कविता-संग्रह)।
नेशनल बिब्लियोग्राफ़ ऑफ़ इंडियन लिटरेचर
साहित्य अकादेमी की कार्यकारी मंडल की 19 अगस्त 2002 को हुई बैठक मेंे लिए गए निर्णय के अनुरूप, एन.बी.आई.एल. की दूसरी श्रंखला, जिसमें सन् 1954-2000 तक का काल खंड सम्मिलित है, का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। यह पुस्तक विद्वानों, पुस्तकालय के पाठकों, प्रकाशकों, पुस्तक विक्रेताओं तथा उन व्यक्तियों के लिए कारगर सिद्ध होगी, जो पुस्तकों को संदर्भिका के रूप में देखने की रुचि रखते हैं।
इसकी दूसरी श्रंखला में, साहित्यिक स्तर की समस्त पुस्तकों तथा साहित्य के क्षेत्र में स्थायी मूल्यों तथा 1 जनवरी 1954 से 31 दिसंबर 2000 तक के मध्य प्रकाशित संबद्ध विषय सम्मिलित हैं।
इस परियोजना के अंतर्गत 22 भारतीय भाषाओं की ग्रंथ-सूची का संकलन बनाने की योजना है। इस संदर्भ में 22 भाषाओं के विशेषज्ञों को अनुबंधित किया गया है। उक्त कार्य संकलन के विभिन्न स्तरों पर किया जा रहा है। बाङ्ला, डोगरी, कन्नड, मैथिली, मलयाळम्, मणिपुरी, नेपाली, ओ़डिया, राजस्थानी, सिन्धी, तमिऴ और उर्दू की ग्रंथ-सूची का कार्य संपन्न हो चुका है। एन.बी.आई.एल. की प्रकाशन की प्रक्रिया को प्रारंभ कर दिया गया है तथा बाङ्ला, मलयाळम्, ओ़डिया और तमिऴ के खंड पहले से ही प्रकाशनाधीन हैं। तैयार सामग्री को सीआईआईएल-अकादेमी-एनबीटी वेबसाइट पर उपलब्ध कराया गया है। उक्त कार्य को पुस्तक के साथ-साथ सी.डी. में भी उपलब्ध कराया जाएगा।
नेशनल बिब्लिओग्राफ़ ऑफ़ ट्रांसलेशन
प्रस्तावित संदर्भ ग्रंथ की परियोजना विभिन्न भारतीय भाषाओं में हुए परस्पर अनुवादों तथा अन्य भाषाओं से अनुवादों के ऑंक़डे उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभाएगी। इसके द्वारा उपलब्ध अनुवादों की सही जानकारी उपलब्ध हो सकेगी, जिससे अनुवाद के लिए अनछुई कृतियों के चयन में सुविधा होगी। यह पुस्तक-प्रेमियों, पुस्तकालयों, संस्थाओं आदि के लिए भी एक महत्त्वपूर्ण सूचना स्रोत सिद्ध होगी।
इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ इंडियन पोएटिक्स
इस परियोजना का उद्देश्य लेखकों तथा भारतीय काव्य के मूल पाठों, जैसे - संस्कृत, पालि, प्राकृत और तमिऴ तथा आधुनिक भारतीय भाषाओं की अवधारणाओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करना है।
इस परियोजना की रूपरेखा तथा संचालन के लिए एक उपसमिति का गठन किया गया है।
साहित्य अकादेमी कंपेनियंस
भारत की एक ब़डी और अनूठी आख्यान परंपरा रही है, जिसकी शुरुआत लोक महाकाव्यों, पुराणों तथा महाकाव्यों से होती है। भारतीय उपन्यास ने, पश्चिमी उपन्यासों से मुक़ाबला करने की दौ़ड में अपनी देशज वर्णनात्मक विधियाँ, शैलियाँ और तकनीकें विकसित की हैं। दो खंडों के लिए प्रस्तावित भारतीय वृत्तांतों के पुनरीक्षण द्वारा प्राचीन और नए भारतीय वृत्तांतों के बारे में जानना काफ़ी रोचक होगा। प्रथम खंड में अधिकांशत: पाठों, प्रसंगों और पात्रो की प्रविष्टियाँ होंगी, जबकि दूसरे खंड में पाठों, लेखकों और पात्रो की प्रविष्टियाँ होगीं।
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अद्यतन : 21.12.2024
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