मुख्‍य पृष्‍ठ > संकल्‍पना


 

लोक साहित्य पर राष्ट्रीय संगोष्ठी : कथन एवं पुनर्कथन

 

दिनांक : 24-26 फ़रवरी 2017

कार्यक्रम का प्रकार :राष्ट्रीय संगोष्ठी

कार्यक्रम स्‍थल : साहित्‍य अकादेमी, रवींद्र भवन, 35 फ़ीरोज़शाह मार्ग, नई दिल्‍ली- 110001

 

संकल्‍पना आलेख आमंत्रित  

साहित्‍य अकादेमी
नई दिल्‍ली

 

लोक साहित्य पर राष्ट्रीय संगोष्ठी : कथन एवं पुनर्कथन

 

24-26 फरवरी 2017

 

संकल्‍पना

 

संदर्भ :
लोकसाहित्य यकीनन किसी भी देश तथा उसकी लोकप्रिय संस्कृति के सामूहिक जीवन की समृद्ध तथा सर्वाधिक स्थायी परत है। विशेषरूप से भारत में, जहाँ हाल तक साक्षरता की तुलना में वाचिकता ही अभिव्यक्ति तथा संवाद का अत्यधिक व्यापक माध्यम रही है। सांस्कृतिक, नैतिक तथा भावनात्मक औपचारिकताओं के उद्भव को उन कहानियों द्वारा बेहतर समझा जा सकता है, जिन्होंने लोगों के सामाजिक संसार का गठन किया है। लोकसाहित्य इस प्रकार की कहानियों का समृद्ध स्रोत है। भारत की सभ्यता के लंबे इतिहास तथा इसकी विविध जातियों, भाषाओं, बोलियों तथा जीवन-पद्धतियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत में लोकसाहित्य की परंपरा अचंभे में डाल देनेवाली, व्यापक तथा वैविध्यपूर्ण है।

 

संगोष्ठी की पृष्ठभूमि :
यद्यपि पिछले कुछ दशकों में भारत में लोकसाहित्य अध्ययन में लोगों की रुचि बढ़ी है, परंतु इस क्षेत्र में शैक्षिक निष्पत्ति का स्तर अभी भी पर्याप्त नहीं है। एक सदी से भी अधिक समय से लोकसाहित्य का संग्रहण, वर्गीकरण तथा संरचनात्मक विश्लेषण नृजातीय एवं मानवशास्त्रीय परियोजनाओं का हिस्सा रहा है, परंतु साहित्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। 20वीं तथा 21वीं शताब्दी में भारतीय लोकसाहित्यकारों के उद्भव के साथ समसामयिक लोकसाहित्य अध्ययन ने भारत में अपने लिए एक सुरक्षित स्थान बना लिया है, मगर इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के प्रति रुचि तथा चिंता साहित्य के मुख्यधारा के विद्वानों में पर्याप्त स्थान नहीं बना पाई है।

 

हाशिए से केंद्र की ओर :
कुल मिलाकर लोकसाहित्य हाशिए की स्थिति से बाहर निकलने के लिए, जातीय चेतना का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनने के लिए समय की कसौटी का सामना कर रहा है। देश की विशाल सांस्कृतिक तथा भाषाई विविधता को देखते हुए, भारत में अनुवाद हमेशा से भारतीय लोकसाहित्य का अभिन्न अंग रहा है। तथापि, हाल के वर्षों में, यह क्षेत्र तेजी से अंतर-अनुशासनिक बन गया है। संप्रेषण सिद्धांत, इतिहास-लेखन में ‘पापुलर’ तथा ‘सबॉल्टर्न’ शब्दों को दिया जाने वाला महत्त्व तथा आधारभूत राजनीतिक जागरूकता ने शोधार्थियों को उनके विशिष्ट एवं पारस्परिक अनुशासनात्मक सरोकारों के माध्यम से लोकसाहित्य का अध्ययन करने के लिए तैयार किया है।

 

उद्देश्य :
संगोष्ठी का उद्देश्य है विभिन्न विषयों के अध्येताओं के मध्य लोकसाहित्य पर आधारित संवाद का सूत्रपात करना तथा इसके साहित्यिक पहलुओं के अध्ययन के लिए अधिक निर्दोष पद्धति के साथ काम करना। आशा है कि संगोष्ठी के अंतर्गत हमारे लोकसाहित्य की समृद्धि का रेखांकन विभिन्न भाषाओं तथा बोलियों से लोक-आख्यानों के नए तथा रचनात्मक अनुवाद को प्रोत्साहित करेगा जिससे इन वाचिक भंडारों को गति मिलेगी। इस प्रकार निर्मित्त लोकसाहित्य का समृद्ध संग्रह आगे चलकर इस क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देगा तथा हमारी लोक विरासत को अधिक सराहना मिलेगी।


विषय :
निम्नलिखित विषयों पर प्रस्तुतियाँ आमंत्रित की गई हैं, परंतु कुछ अन्य विषय भी प्रस्तावित किए जा सकते हैं :

 

लोकसाहित्य एवं सांस्कृतिक प्रामाणिकता
लोकसाहित्य एवं जादू
लोकसाहित्य एवं राष्ट्रीय/क्षेत्रीय चेतना का निर्माण
लोकसाहित्य एवं मीडिया
डिजिटल मानविकी में लोकसाहित्य
लोकसाहित्य एवं धार्मिक प्रथाएँ
लोकसाहित्य एवं किस्सागोई की कला
लोककथा एवं महाकाव्य
लोक आख्यान एवं आधुनिक तकनीक
लोक आख्यान एवं सामाजिक संप्रेषण
लोकसाहित्य तथा उसके आधुनिक रूपातंरण
लोकसाहित्य की प्रस्तुति
लोकसाहित्य एवं लोकप्रिय संस्कृति
लोकसाहित्य एवं प्रतिरोधी आंदोलन